सुन्दर गंगा से सुन्दर कुछ नहीं है!
नील वसन , उज्जवल वेश
झरने ज्यों लहराते केश
भर निराशा मे सामर्थ्य अनूठा
पवित्र प्रेम की परछाई हो!
सुन्दर गंगा से सुन्दर कुछ नहीं है!
तुम्हारे तन की भंगिमा से
छटा है छहरी, लालसा भी
तुम नव सृष्टि प्रमाण हो
हरित विटप मे भर शृंगार
अर्थ सत्य तुम ही सृजन हो!
सुंदर गंगा से सुंदर कुछ नहीं है
हर अंग उमंग लचकाव लिए
हाथो मे भर बाबुल आशीषे
दोनों हाथ लूटाती सी
रमणीक वधु जग मे आई हो
सुन्दर गंगा से सुंदर कुछ नहीं है
पेड़ तटों के मानो देवर ,
झुक झुक शीश नवाते से
चांद पूनो का मानो झिलमिल
मुख तुम्हारा प्रत्यक्ष सुंदरी
सर पर पल्ला लिए लहर का
इठलाते हुए य़ह चलना तुम्हारा
सुंदर गंगा से सुंदर कुछ नहीं है
तुम्हें अपनी बाँहों में भर लूँ
जब जब प्रयत्न किया है मैंने
छू कर बनी स्वर्ण सी मै भी
तुम तो सचमुच पारस हो
सुंदर गंगा से सुंदर कुछ नहीं है
आकाश मानो उत्सुक पड़ोसन
झाँक रहा कौतूहल देखो
जल तरंग उल्लास छिड़कती
तुम इत्र सुगंध बह रही हो
सुन्दर गंगा से सुन्दर कुछ नहीं है!
डॉ मेनका त्रिपाठी