विचार

” निलय जी ने कहा कि अपनी अन्तर्यात्रा करें, बुद्धि के स्तर पर आत्म अन्वेषण करें कि सबकुछ घटित हो रहा है। स्वामी विवेकानंद प्रकृतिवादी कविता में कहते हैं कि देश, काल, वस्तु, से हम बंदे हैं फ्री विल है ही नहीं तीनों गुण 17 अधिकतम एक दूसरे में परिवर्तित हो रहे हैं राधिका नागरथ

“जन्म लेना ही दुख का कारण है” मेरी दृष्टि में आप किसी जीव को जन्म नहीं दे रहे है अपितु आप एक चेतना को जन्म दे रहे है। इससे प्रक्रिया को घटित होने के चेतना क स्तर ऊंचा होना चाहिए।

प्रकृतिवादी लेखक संघ के संगठन के अवसर में उपस्थित हुई। संयोजिका एवं जिनके अन्तर्मन में यह भाव आया कि मेरी भी उपस्थिति इस महत्वपूर्ण बैठक में दर्ज हो, उनके प्रति में आभारी हूं कि मुझे लेखन का अवसर मिलेगा। मार्गदर्शन प्राप्त कर चिन्तन को दिशा मिलेगी। जीनन में य‌त्किञ्चित् योगदान मेरा होगा । स्वयं को भाग्यशाली मानती हूँ कि पुनः आभार इस संकल्प के साथ अपने दायित्व का निर्वहन कर सकूँ ।

मनुष्य को पनी मूल प्रकृति के अनुसार त्याग पूर्वक जीवन निर्वहन करना चाहिए!

“प्रकृतिवादी लेखक संघ उत्तराखंड इकाई की स्थानीय स्तर पर स्थापना के अवसर पर आए निलय उपाध्याय जी के संकल्प को प्रमाण चढ़ाने के लिए संगठन के हर सदस्य को सबसे पहले स्वयं को समझना होगा वैसे उनकी समाज के पास के आधार पर ही प्रकृति को समझ सकता है प्रकृति हमारे लिए हमे के लिए होना ही होगा उसके लिए हमें प्रकृति से जुड़कर संरक्षण के लिए संकल्पबद्ध होना पड़ेगा ! “

” रहती है खामोश मगर वह सब कुछ करती मां! हमारी धरती मां! हमारी प्रकृति मां! “

प्रकृति के समस्त अंगों के साथ संतुलित जीवन वहाँ का असली सौंदर्य है, जहाँ विकास और संरक्षण का सामंजस्य है। इस संतुलन में ही हमारे जीवन की सार्थकता और समृद्धि निहित है।”

“प्रकृति संरक्षण का संकल्प: हमारी धरती की सुरक्षा, हमारा भविष्य।”

क्योंकि हमारी अंतरात्मा में भी प्रकृति का हिस्सा है। हमारे अंतर्निहित भावनाएं, आदतें और सोच हमें प्रकृति के साथ संवाद में लेने में मदद करती हैं। इससे हम प्रकृति की संरचना, संतुलन, और संबंध समझ सकते हैं और अपने जीवन को उसके साथ एक संरेखित रूप में जी सकते हैं।

युवाओं को प्रकृति के प्रति सम्वेदनशील बनाना आवश्यक है, क्योंकि वे हमारे भविष्य के नेतृत्व की भूमिका निभाएंगे। प्रकृति से संबंधित ज्ञान और सचेतता उन्हें समर्पित करेगा, जिससे वे समृद्धि और पर्यावरण संरक्षण में सक्षम होंगे।

मीडिया के माध्यम से भटकते-मटकते युवाओं को राह दिखाना हमारा संकल्प होना चाहिए। उन्हें सच्चाई, सही दिशा, और प्रेरणा प्रदान करके, हमें उन्हें सामाजिक और पर्यावरणिक संजीवनी जीवन के मार्ग पर ले जाना है।

“प्रयोगवाद, छायावाद, और प्रगतिवाद के साथ-साथ, प्रकृत्ति वाद भी एक महत्वपूर्ण विचारधारा है। यह पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और उनके संचालन में सहायक होने की दिशा में काम करता है। प्रकृति वादी विचारधारा प्राकृतिक संसाधनों की महत्वपूर्णता को समझती है और उनके उपयोग को सामाजिक, आर्थिक, और पर्यावरणीय पहलुओं के साथ संतुलित बनाने के लिए उत्साहित करती है। इसका ध्यान रखने से हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। लेकिन हमें यह भी समझना होगा प्रकृति केवल पर्यावरण का हिस्सा ही ना बने मनुष्य अपने मूल प्रकृति को भी गहरी समझ के साथ संतुलित और व्यवस्थित करें

संयोजिका प्रकृतिवादी लेखक संघ उत्तराखंड इकाई

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