डॉ मेनका त्रिपाठी

गंगा काल का भी एक तट है, जिसमें सभ्यता के विकास क्रम की पूरी गाथा है!कल आज और कल की दृष्टि से गंगा की विवेचना इस आलेख का प्रतिपाद्य है! अथर्ववेद मे प्रथम बार गंगा को वर्णित किया गया! ऋग्वेद का 10/75 सूक्त ‘नदी सूक्त’ ही कहा जाता है। इसमें एक साथ अनेक नदियों का उल्लेख है। मन्त्र है-

इमं मे गङ्गे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परुष्णया
असिक्न्या मरूद्ष्टधे वितस्तयाSSर्जिकीये शणुह्या सुषोमाया।।

ऋ 10/75/5

इस मंत्र में जिन नदियों का उल्लेख है, वे हैं- गंगा, यमुना, सरस्वती, शतुद्रि, परुष्णी, असिक्नी, मरुद्वृषा (चेनाव की एक सहायक नदी), वितस्ता, आर्जिकीया, सुषोमा। इसके पश्चात गंगा महिमा से सम्पूर्ण धर्म शास्त्र भरे हुए हैं! मत्स्य पुराण, ब्रह्म पुराण, शिव पुराण रामायण महाभारत कुर्म पुराण स्कन्द पुराण में गंगा अवतरण के जितने संदर्भ उल्लेख मिलते हैं सब प्रामाणिक है!

गंगा ने वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन शिव की जटाओं में अवतरण किया और ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी, हस्ती नक्षत्र तथा मंगलवार के दिन धरती का स्पर्श किया था।’गंगा दशहरा’ गंगा के पृथ्वी पर अविर्भाव का दिन माना गया है । भगवान विष्णु के चरणो से निकलने के कारण इसे विष्णुपदी कहा गया है। वस्तुतः देखा जाय तो ब्रह्मा, सृष्टि के सृजन कर्ता, विष्णु पालनहार तथा महेश संहार एवं कल्याण दोनों के प्रतीक है। गंगा अपने अभिर्भाव के समय जहां विष्णु की 84शक्ति के रूप में प्रादुर्भाव होती है। वहीं ब्रह्मा के कमंडल में समाहित होकर संपूर्ण सृष्टि को अपने अन्दर निहित करती है। शिव की जटाओं में आकर त्रिपथगा का स्वरूप लेती है। पतित पावनी गंगा की महत्ता सर्वविदित है। प्राचीन धर्मग्रंथ ऋग्वेद में गंगा का जिक मिलता है। परम्पराओं ने इसे सनातनऔर सृष्टि से पहले का माना है।

स्कन्दपुराण में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ल दशमी संवत्सरमुखी मानी गई है इसमें स्नान और दान करें। किसी भी नदी पर जाकर अर्घ्य (पूजादिक) एवम् तिलोदक (तीर्थ प्राप्ति निमित्तक तर्पण) अवश्य करें। ऐसा करने वाला महापातकों के बराबर के दस पापों से छूट जाता है।

यदि ज्येष्ठ शुक्ला दशमी के दिन मंगलवार रहता हो व हस्त नक्षत्र युता तिथि हो यह सब पापों के हरने वाली होती है। वाराह पुराण में लिखा हुआ कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी बुधवारी में हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी स्वर्ग से अवतीर्ण हुई थी वह दस पापों को नष्ट करती है। इस कारण उस तिथि को दशहरा कहते हैं। ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, बुधवार, हस्त नक्षत्र, गर, आनंद, व्यतिपात, कन्या का चंद्र, वृषभ के सूर्य इन दस योगों में मनुष्य स्नान करके सब पापों से छूट जाता है।

भविष्य पुराण में लिखा हुआ है कि, जो मनुष्य इस दशहरा के दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार इस स्तोत्र को पढ़ता है चाहे वो दरिद्र हो, चाहे असमर्थ हो वह भी प्रयत्नपूर्वक गंगा की पूजा कर उस फल को पाता है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी तिथि को पहाड़ों से उतरकर मां गंगा हरिद्वार ब्रह्मकुंड में आईं थीं और तभी से इस दिन को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाने लगा. मान्यता है कि गंगावतरण की इस पावन तिथि के दिन गंगाजी में स्नान करना बेहद कल्याणकारी माना गया है! ज्येष्ठ मास दशमी तिथि आरंभ 19 जून 2021, शनिवार से प्रारम्भ होकर आज शाम 06:50 बजे तक मानी जाएगी!

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन गंगा मां की आराधना और नदी में स्नान करने व्यक्ति को दस प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है। दस पाप कर्म-जैसे
1.दूसरों का धन हड़पने की इच्छा2.निषिद्ध कर्म (मन जिन्हें करने से मना करें) करने का प्रयास।3.देह को ही सब कुछ मानना।4.कठोर वचन ।5.झूठ ।6.निंदा 7.बकवास (बिना कारण बोलते रहना)।8.चोरी 9.तन, मन, कर्म से किसी को दु:ख देना।10.पर-स्त्री या पुरुष से संबंध बनाना।इत्यादि पापो से मुक्ति मिल जाती है, उपरोक्त पापो मे शायद ही कोई पाप होगा जो हम न करते हो, समझने की बात है गंगा स्नान के पश्चात स्वयं के परिष्कार के लिए आत्म बोध भी बेहद आवश्यक है, जबकि हम रुढियों और अंधविश्वास का सहारा लेकर मात्र गंगा स्नान को मनोरंजन और पर्यटन का हिस्सा मानते हैं!

बात पाप की ही नहीं पुण्य की भी की जाए तो मनु स्मृति में 10 पुण्य कर्म भी बताए गए हैं जिनका स्मरण गंगा दशहरे पर किया जाना चाहिए!
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम् ॥-मनु स्मृति 6/92दस पुण्य कर्म-
1.धृति- हर परिस्थिति में धैर्य 2.क्षमा- बदला न लेना, क्रोध का कारण होने पर भी क्रोध न करना।3.दम- उदंड न होना।
4.अस्तेय- दूसरे की वस्तु हथियाने का विचार न करना।
5.शौच- आहार की शुद्धता। शरीर की शुद्धता6.इंद्रियनिग्रह- इंद्रियों को विषयों (कामनाओं) में लिप्त न होने देना।7.धी- किसी बात को भलीभांति समझना।8.विद्या- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ज्ञान।
9.सत्य- झूठ और अहितकारी वचन न बोलना।
10.अक्रोध- क्षमा के बाद भी कोई अपमान करें तो भी क्रोध न करना।
माना कि गंगा ध्यान एवं स्नान से प्राणी काम, क्रोध, लोभ, मोह, परनिंदा जैसे पापों से मुक्त हो जाता है। यही नहीं स्नान मात्र से सभी कष्टों से मुक्ति के साथ पुण्य फलों की प्राप्ति भी होती है।पर आज आवश्यकता है कि गहन रूप से हम इन मूल्यों पर विचार करे! और इन्हें जानकर और इन पर अमल कर अपने जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए!
साथ ही गंगा दशहरा के दिन नदी में दीपक प्रज्ज्वलित करके ईश्वर का ध्यान कर, शुभ लाभ की प्राप्ति करे! कहते हैं न कि “जिसके भाव सच्चे उसके हो हर काज अच्छे”!

गंगा कल भी हमारी आत्मा थी आज भी अमृत सलिला है और कल भी कल्याणकारी रहे!

अनंत अशेष मंगलकामनाओ के साथ गंगा जी सर्व रोग नाश करे!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *