भारतीय संस्कृति में वृक्षों की पूजा और संरक्षण का विशेष महत्व है, जो सदियों से पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में सहायक रही है। वृक्षों को पवित्र मानकर उनकी पूजा करने की परंपरा भारतीय समाज में गहराई से जुड़ी हुई है। इस आलेख में हम उन प्रमुख वृक्षों पर चर्चा प्रस्तुत है, जिन्हें सनातन परम्परा में पवित्र माना गया है
प्राणवायु का स्रोत:
वृक्ष ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत हैं, जो जीवन के लिए अनिवार्य है। पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं, जिससे वायुमंडल का संतुलन बना रहता है।
मिट्टी की उर्वरता:
वृक्षों की जड़ें मिट्टी को स्थिर रखती हैं, जिससे मृदा अपरदन कम होता है। इसके अलावा, पत्तियों के गिरने और सड़ने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
जल संरक्षण:
वृक्ष जल चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे भूजल स्तर को बनाए रखने में मदद करते हैं और वर्षा के जल को संचित करते हैं, जिससे जलस्रोत सुरक्षित रहते हैं।
जलवायु नियंत्रण:
वृक्ष तापमान को नियंत्रित करते हैं और वातावरण को ठंडा बनाए रखते हैं। यह ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में सहायक होता है।
आवास और जैव विविधता:
वृक्ष विभिन्न प्रजातियों के जीव-जंतुओं के लिए आवास प्रदान करते हैं। यह जैव विविधता को संरक्षित रखने में मदद करता है, जो पर्यावरण संतुलन के लिए आवश्यक है।पवित्र वृक्ष और उनकी पूजासनातन परम्परा में कई वृक्षों को पवित्र माना गया है और उनकी पूजा की जाती है। इनमें से कुछ प्रमुख वृक्ष निम्नलिखित हैं
पीपल अश्वत्थ
अश्वत्थ को विशेष रूप से भगवान शिव और विष्णु से जुड़ा माना जाता है। इसे “वृक्षों का राजा” कहा जाता है।पीपल को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसे भगवान विष्णु का निवास स्थान माना जाता है। इस वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान और पूजा करने से मानसिक शांति मिलती है
बरगद के वृक्ष को भी अत्यधिक पवित्र माना जाता है। इसे भगवान शिव और देवी सावित्री से जोड़ा जाता है। वट सावित्री व्रत के दौरान महिलाएँ बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं और उसकी परिक्रमा करती हैं।
तुलसी :तुलसी का पौधा हिंदू घरों में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसे माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ माना जाता है। तुलसी की पूजा करने से घर में शांति और समृद्धि आती है।
नीम के वृक्ष को स्वास्थ्यवर्धक और औषधीय गुणों के कारण पूजनीय माना जाता है। इसे देवी दुर्गा का प्रतीक माना जाता है और इसकी पत्तियों का उपयोग पूजा और धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है।
आंवला
आंवला वृक्ष को भी पवित्र माना जाता है और इसे देवी लक्ष्मी से जोड़ा जाता है। आंवला नवमी के दिन इसकी पूजा की जाती है और इससे बनी चीज़ों का सेवन शुभ माना जाता है।
अशोक
अशोक के वृक्ष को शोक-नाशक माना जाता है और इसे भगवान राम से जुड़ा हुआ माना जाता है। अशोक के पेड़ की पूजा करने से दुखों का नाश होता है।
बिल्व (बेल)
बेल का वृक्ष भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इसकी पत्तियाँ शिवलिंग पर चढ़ाई जाती हैं। बेल के वृक्ष को धार्मिक अनुष्ठानों और आयुर्वेद में महत्वपूर्ण माना गया है।
कदम्ब
कदम्ब का वृक्ष भगवान कृष्ण से जुड़ा हुआ है। इसे श्रीकृष्ण की लीलाओं का साक्षी माना जाता है। यह वृक्ष भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा में भी उपयोगी है। वृक्ष पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैहै।
महुआ के वृक्ष को धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व प्राप्त है। इसकी पूजा विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में होती है। महुआ का पेड़ आर्थिक और औषधीय उपयोग के लिए भी महत्वपूर्ण है।
खेजड़ी का वृक्ष राजस्थान और हरियाणा में पवित्र माना जाता है। इसे पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण माना गया है। खेजड़ी का वृक्ष बिश्नोई समुदाय द्वारा संरक्षित है और इसकी पूजा की जाती है।शमी :शमी का वृक्ष विशेष रूप से दशहरा और नवरात्रि के दौरान पूजा जाता है। इसे भगवान राम, अर्जुन और शिव से जुड़ा हुआ माना जाता है। शमी के वृक्ष की पूजा करने से समृद्धि और सुरक्षा का आशीर्वाद मिलता है।
चन्दन :
चन्दन का वृक्ष पवित्र माना जाता है और इसका उपयोग भगवान की मूर्तियों को बनाने और पूजा सामग्री में होता है। चन्दन की लकड़ी और तेल का धार्मिक और औषधीय उपयोग भी होता है।इन वृक्षों का पर्यावरणीय, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, और इनकी पूजा और संरक्षण सनातन परम्परा का महत्वपूर्ण हिस्सा है। ये वृक्ष न केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं, बल्कि वे पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में भी सहायक हैं। सनातन परम्परा में वृक्षों की पूजा और संरक्षण का यह संदेश आज भी प्रासंगिक है और पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों में सहायक हो सकता है।
डॉ मेनका त्रिपाठी
संयोजिका प्रकृति वादी लेखक संघ उत्तराखण्ड इकाई