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हिंद महासागर के तट पर एक शिला पर बैठते ही हुई राम के शक्तिपूजा की अनुभूति
‘राम की शक्ति पूजा’ एमए में पढ़ी आज तक पढ़ रही क्योंकि इस अद्भुत कविता में वर्तमान को धारण करने की अद्भुत क्षमता है। विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी के अवसर अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी संगोष्ठी मे प्रतिभाग का अवसर मिला। इसका आयोजन भारतीय उच्चायोग कोलम्बो,स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केन्द्र कोलम्बो एवं श्रीलंका के विभिन्न विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान मे किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन भारतीय उच्चायोग, शिक्षा मन्त्री श्रीलंका ,निदेशक सांस्कृतिक केन्द्र और श्रीलंका के विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रोफेसर द्वारा किया गया। संगोष्ठी की समाप्ति पर श्रीलंकाई विश्वविद्यालय द्वारा शैक्षणिक यात्रा का आयोजन किया गया था। जिसमे कोलम्बो विश्वविद्यालय, केलेनिया विश्वविद्यालय, महात्मा बुद्ध जी के धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थल और रामायण कालीन स्थल का भ्रमण कराया गया। श्रीलंका मे देखने के लिए बहुत कुछ है,पहुंचने पर डॉ Subha Rathnayaka ने उसी हिंद महासागर के तट पर एक शिला पर बैठा दिया मानो किसी अदृश्य कृपा से राम की शक्ति पूजा को अनुभूत करने का सुअवसर मिला, हजारों वर्ष पूर्व की कल्पनायें तितलियों सी मंडराने लगी लगा अपने ही रक्त से सने श्रीराम की सेना क चुपचाप, सिर झुकाए शिविरों में लौट रही । चारों तरफ अमावस्या का अंधेरा,पराजय का सन्नाटा है। आकाश अंधकार उगल रहा है,हवा का चलना रूका हुआ है,पृष्ठभूमि में स्थित समुद्र गर्जन कर रहा है,पहाड़ ध्यानस्थ है और मशाल जल रही है। यह परिवेश किसी हद तक राम की मनोदशा को प्रतिबिंबित करता लगा ,जो संशय और निराशा से ग्रस्त है। सारी परिस्थितियाँ उनके प्रतिकूल हैं,बस उनकी बुद्धि (मशाल) ने अभी तक उनका साथ नहीं छोड़ा है और वह प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करती हुई अभी भी जागृत है। इन्हीं चार दिनों प्रवास के दौरान अनुभूति हुई कैसे ,स्थितप्रज्ञ राम को भी उनके मन में उत्पन्न संशय ने डराया होगा । रह-रहकर उनके प्राणों में बुराई और अधर्म की साक्षात मूर्ति रावण की जीत का भय जाग उठा होगा इन क्षणों में राम को शक्ति की वह भयानक मूर्ति याद आती थी जो उन्होंने आज के युद्ध में देखी थी। राम ने रावण को मारने के लिए असंख्य दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया,लेकिन वे सारे-के-सारे बुझते और क्षणभर में शक्ति के शरीर में समाते चले गए जैसे उन्हें परमधाम मिल गया हो। राम ने अपनी स्मृति में यह जो दृश्य देखा तो अतुल बलशाली होते हुए भी वे अपनी जीत के प्रति शंकालु हो उठे और उन्हें लगा कि शायद वे अब अपनी प्रिया सीता को छुड़ा ही नहीं पाएंगे-
“धिक जीवन को जो पाता ही आया विरोध,
जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका। ,राम परेशान हैं यह सोंचकर कि ‘अन्याय जिधर है उधर शक्ति है’। ऐसे में अन्याय और अधर्म के साक्षात प्रतीक रावण को कैसे पराजित किया जाए-
“लांछन को ले जैसे शशांक नभ में अशंक,
रावण अधर्मरत भी अपना,मैं हुआ अपर
यह रहा शक्ति का खेल समर,शंकर,शंकर!”
,राम के नेत्रों से इस समय चुपचाप अश्रुधारा बह रही थी। वे उदास थे परन्तु मां अपराजिता देवी के अद्भुत आशीष से उन्होंने असत्य को सत्य से जीत आदर्श स्थापित कराया सब अनुभव अनुभूति बने!
राम जी की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व ये अद्भुत अनुभूति शीघ्र मेरी यात्रायें पुस्तक के अंश बने, ऐसा वर माँगा मैंने
ईश्वर की शौर्य विनम्र कथा को शब्द शब्द पुनः पाठ कर आज नकारात्मक ऊर्जा को जड़ सहित उखाड़ देने का साहस मां सभी को प्रदान करे, विवेक संयम बना रहे श्री राम की विजयी सेना और हमारा प्रस्थान मानो भाव वहीं से थे अयोध्या के भव्य आयोजन पर मन का उल्लास उसी तरह उछाले मार रहा जैसे हिंद महासागर को देख रही हूँ!
(हरिद्वार की प्रसिद्ध साहित्यकार व कवियत्री डॉक्टर मेनका त्रिपाठी की कलम से)